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पर्यावरण

दिल्ली में वायु प्रदुषण का खतरा बड़ा – पटाखों की तेज आवाज के साथ ही हवा में घुला जहरीला धुंआ

आकाश ज्ञान वाटिका। दीपावली रोशनी एवं खुशियों का पर्व है। लेकिन इस दिन की सार्थकता दिन पर दिन काम होती जा रही है। खतनारक रसायन वाले पटाखों को जलाने का भी चलन बढ़ता ही जा रहा है जो हमारी सेहत पर बुरा असर डालते हैं। पटाखों को बनाने में गन पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी वजह से हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड फैलती है। जिसके कारण वायु प्रदूषण फैलता है और दमा के रोगियों के लिए जहर का काम करता है। पटाखों में मौजूद पोटैशियम क्लोरेट तेज रोशनी पैदा करते हैं जिसकी वजह से हवा जहरीली हो जाती है और फेफड़ों से जुड़ी परेशानी घेर लेती है। दीपावली के पटाखों से होने वाले प्रदूषण से ऐसे जहरीले कण निकलते हैं जिनकी वजह से आंखों में जलन और पानी निकलने की समस्या हो जाती है। तेज धमाकों के पटाखों की वजह से कान के पर्दे तक फट जाते हैं जिनसे बहरापन होने का खतरा रहता है। दीवाली के समय पटाखे जलाने पर खतरनाक कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस सांस में घुलकर गर्भवती स्त्री के गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे गर्भपात तक होने का खतरा रहता है।

देश की राजधानी दिल्ली में २७ अक्टूबर, रविवार का दिन प्रदूषण की चपेट में रहा फिसकी वजह से पूरी दिल्ली में धुंध छा गई और वायु गुणवत्ता बहुत खराब स्तर पर पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पटाखा छोड़ने के लिए दो घंटे की सीमा तय की थी, लेकिन लोगों ने इसकी परवाह तक नहीं की तथा देर रत तक पटाखे छोड़े। दिल्ली की हवा में पटाखों की तेज आवाज के साथ ही जहरीला धुंआ और राख भर गया और कई स्थानों पर वायु गुणवत्ता का स्तर गंभीर स्तर को पार गया। लोगों ने मालवीय नगर, लाजपत नगर, कैलाश हिल्स, बुराड़ी, जंगपुरा, शाहदरा, लक्ष्मी नगर, मयूर विहार, सरिता विहार, हरी नगर, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, द्वारका सहित कई इलाकों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पटाखा छोड़ने के लिए तय दो घंटे की समयसीमा का उल्लंघन करके पटाखे छोड़ने की सूचना इसके अलावा नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद में भी निवासियों ने निर्धारित समय के अलावा भी पटाखे छोड़े। सरकारी एजेंसियों के मुताबिक रविवार रात को दिल्ली की औसत वायु गुणवत्ता का स्तर 327 पर पहुंच गया, जबकि शनिवार को यह 302 था।

राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान द्वारा ‘ग्रीन पटाखों’ की खोज गई है जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। इनको जलने से पारंपरिक पटाखे की तुलना में 30 फीसदी कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं। साधारण पटाखों से सल्फर डाइआंक्साइड और नाइट्रोजन डाइआंक्साइड आदि हानिकारक गैसें निकलती हैं जो हवा में घुल जाती हैं और उसे प्रदूषित कर देती हैं। इन पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से हमारे शरीर को नुकसान पहुँचता है। ग्रीन पटाखों को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि वे पारंपरिक पटाखे की तुलना में 30 फीसदी कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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