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स्वास्थय के लिये शहद एक सर्वोत्तम औषधि

प्रकृति द्वारा प्रदत्त, सर्वोत्तम औषधि है शहद

आकाश ज्ञान वाटिका। शहद प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक सर्वोत्तम औषधि है। शहद का उपयोग मनुष्य के जीवन में बाल्यकाल से ही आरम्भ हो जाता है। जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसे सबसे पहले शहद ही चटाया जाता है। उसे शहद से नहलाया भी जाता है, क्योंकि शहद बच्चे की ठंड से रक्षा करता है। शहद किसी भी प्रकार के रोग में प्रभावकारी सिद्ध होता है। शहद का र्निमाण मधुमक्खियाँ करती हैं। मधुमक्खियाँ विभिन्न प्रकार के फूलों का रस संचय करके शहद का र्निमाण करती हैं और अपने छत्तों में इसे सुरक्षित रखती हैं। फूलों का रस यद्यपि फीका, पतला और पानी की तरह रंगहीन होता है, लेकिन मधुमक्खियों के तन की खुराक पाकर गाढ़ा, स्वादिष्ट और मीठा हो जाता है। शहद का सबसे बड़ा गुण है इसका जल्दी पच जाना और इसका सार यथाशीघ्र रक्त में घुल जाना। यही कारण है कि शहद के गुणकारी तत्व शरीर को फौरन पौष्टिकता और बल प्रदान करते हैं। शहद का एक गुण यह भी है कि यह जिस तासीर में मिल जाता है, उसी तासीर का हो जाता है। वैसे गर्म शहद या गर्म वस्तुओं के साथ शहद का सेवन करना उचित नहीं माना गया है, लेकिन कभी जरूरत पड़ने पर ऐसा किया जा सकता है। शहद में आयरन के अलावा मालटोस, सुक्रोस, फ्रूटकोस, ग्लूकोज, गोंद, मोम और सुगंध के अलावा विटामिन ए, बी और सी भी होता है। शहद सुनहरे रंग का वजनदार, पारदर्शी और स्वाद में मीठा होता है। हिंदू संस्कृति में शहद को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक शहद का प्रयोग किया जाता है। यज्ञोपवीत संस्कार व विवाह के अवसर पर भी शहद अपनी अहम भूमिका निभाता है। शहद जितना पुराना होता है, उतना ही गुणकारी माना जाता है। यह सैकड़ों सालों में भी सड़ता या अशुद्ध नहीं होता है। यह हमेशा ताजा रहता है तथा जो कोई भी व्यक्ति इसका नियमित रूप से सेवन करता है, उसे कभी भी किसी भी प्रकार की औषधि लेने की आवश्यकता नहीं होती है। शहद का नियमित सेवन न सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि शक्तिशाली, सुगढ़ व सौंदर्य से परिपूर्ण भी बनाता है। यह दिल और दिमाग को हमेशा तन्दुरस्त रखता है।

शहद में प्रति सौ ग्राम में पाये जाने वाले पोशक तत्व, खनिज और विटामिन इस प्रकार हैं –

पानी –                                   20.0 फीसदी
कैल्शियम –                           5 मि.ग्रा.
विटामिन ‘बी‘ काॅम्प्लेक्स-      अल्प मात्रा में
प्रोटीन –                                0.3फीसदी
फास्फोरस –                          16 मि.ग्रा.
कैलोरी –                               319
खनिज –                               0.2 फीसदी
आयरन –                             09.5 मि.ग्रा.
कार्बोहाइड्रेट्स –                  79.5 फीसदी
विटामिन ‘सी‘ –                    4 मि.ग्रा.

  • पेट में अपच होने पर आधा चम्मच शहद के साथ 20-25 ग्राम अदरक कुतरकर खायें। दिन में 4-5 बार इसका सेवन करने से इसका अच्छा प्रभाव होता है।
  • पेट में कब्ज की शिकायत होने पर एक दिन उपवास करें और रात को सोने से पहले उबले दूध में आधा चम्मच शहद डालकर पीने से पाचन शक्ति तीक्ष्ण हो जायेगी और अगले दिन से ही कब्ज की परेशानी से आराम मिलेगा।
  • खट्टी डकारें भी अपच के कारण ही आती हैं। इससे मुँह का जायका बिगड़ जाता है और सीने में जलन होती है। अपच में जब आमाशय में अम्लीय तत्वों की वृद्धि हो जाती है तो वह खट्टी डकारों के रूप में मुँह से निकलती हैं।
  • पेट में वायु का प्रकोप भी उत्पात मचाता है। शहद से इस प्रकोप को रोका जा सकता है। आधे चम्मच शहद में आधा नींबू निचोड़कर सेवन करने से अम्लीय तत्वों को विलीन होते देर नहीं लगेगी और खट्टी डकारें आनी बंद हो जायेंगी।
  • शहद को नींबू के रस के साथ सुबह, दोपहर और शाम को तीन बार लेने से खट्टी डकारों के साथ अपच दोश भी समाप्त हो जायेगा।
  • आँत में कोई विकार आने या घाव होने पर उपवास करना अति आवश्यक है क्योंकि आँतों को इससे आराम मिलता है। गर्म गुनगुने पानी के साथ शहद का सेवन आँत विकारों के नाश के लिये उत्तम है। पहले एक गिलास पानी खूब गर्म कर लें, फिर उसमें शहद घोल दें। अब चाय की तरह एक कप लेकर पीयें। दो दिन लगातार इस विधि से शहद का सेवन करने से आँत के घाव के अन्य विकार ठीक हो जायेंगे।
  • मलेरिया से मुक्त होने के लिये हरड़ के साथ लेना चाहिये। एक गिलास पानी उबालकर उसमें 12्र ग्राम पिसी हरड़ मिलाइये। जब पानी 100 ग्राम रह जाये तो उसे आँच से उतार दें। फिर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर मलेरिया के रोगी को पिलायें। दिन में दो बार सुबह-शाम यह खुराक लेने से मरीज मलेरिया से मुक्त हो जायेगा।
  • शहद से हृदय रोगों की भी रोकथाम की जा सकती है। अगर हृदय में सूजन आ जाता है तो शहद खाने से सूजन में आराम मिलता है। शहद हार्ट-अटैक में भी काफी कामगार साबित होता है। हार्ट-अटैक आने पर रोगी को शहद खिलाकर बेहोश होने से बचाया जा सकता है, क्योंकि शहद रक्त में मौजूद ग्लाइकोजन में होने वाली कमी को पूरा कर देता है। उत्तेजना, गर्मी या कमजोरी में हृदय की धड़कनें तेज हो जाये तो दो चम्मच शहद लेने से हृदय की धड़कनें सामान्य हो जायेंगी।
  • शहद फेफड़ों के रोगों में भी लाभदायक होता है। प्रत्येक दिन शहद का सेवन करने से फेफड़ों में होने वाली गंभीर बीमारी क्षय रोग से भी बचा जा सकता है। नियमित रूप से कम से कम 25 ग्राम शहद का सेवन अवश्य करना चाहिये।
  • सर्दी का महाप्रकोप है निमोनिया। फेफड़े शीतलहर की चपेट में आ जायें तो निमोनिया की शिकायत हो सकती है। शहद से निमोनिया को पाँव पसारने से रोका जा सकता है। शहद में अदरक व तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर मरीज को पिला देने से फेफड़ों को शीतलहर के प्रकोप से मुक्त किया जा सकता है। शहद खाँसी का दमन करेगा, कफ को पिघलाकर बाहर निकालेगा और दर्द का बेदर्दी से नाश करेगा। निमोनिया अपने-आप समाप्त हो जायेगा। इसके अलावा मरीज को शहद घोलकर गुनगुना गर्म पानी पिलाया जाये तो भी उसे राहत मिलती है। इसके अलावा मरीज को निमोनिया में परहेज का अवश्य ध्यान रखना चाहिये।
  • रक्तचाप का रोग आज आम हो गया है। भाग-दौड़ भरी, तनावयुक्त आधुनिक जिंदगी में जिसे देखो, वही रक्तचाप से पीड़ित होता जा रहा है। रक्तचाप दो प्रकार का होता है- उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप। इस रोग में भी शहद के साथ सुबह 6 बादाम और साथ में पेठे का रस भी नित्य लें, तो उच्च रक्तचाप से छुटकारा मिल जायेगा। शहद निम्न रक्तचाप में भी कारगर सिद्ध होता है। एक चम्मच शहद के साथ तुलसी के पत्तों का 15 ग्राम रस निगल लेने से दिल की धड़कनें सामान्य हो जायेंगी और निम्न रक्तचाप की शिकायत भी जाती रहेगी।
  • आँखों के विकारों में भी शहद का प्रयोग किया जा सकता है। आँखें लाल होने पर उनमें जलन और चिपचिपाहट होती है तो शहद की 4-5 बूंदें चम्मच पर टपकायें, फिर उसमें ढाई ग्राम सुरमा मिला दें। शहद के इस मिश्रण को आंवले के रस में घोट लें। अब इसे सुखायें, सूख जाने के बाद सलाई से यह मिश्रण दोनों आँखों में एक-एक बार सुरमें की तरह लगायें। 2-3 दिनों में आँखों की लाली जाती रहेगी, न ही जलन होगी और न ही चिपचिपाहट। सूजी आँखों, दुखती आँखों, रतौंधी, काला मोतियाबिंद आदि आँखों के रोगों में भी शहद कारगर सिद्ध होता है।
  • 1-1 चम्मच शहद का सेवन नित्य नियमित रूप से करने पर शरीर की कमजोरी भी दूर हो जाती है।
  • दाँतों व मसूड़ों पर शहद का लेप करने से दाँतों के दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है। अकेला शहद ही मसूड़ों के विकार व दाँतों के कीड़ों का नाश करने में समर्थ है। शहद के साथ 10 ग्राम सिकी और पिसी हुई फिटकरी व पिसी हुई कालीमिर्च का मिश्रित चूर्ण विकारग्रस्त दाँतों व मसूड़ों पर मलें तो सड़न से हमेशा के लिये छुटकारा मिल जायेगा। ठंडा पानी भी दाँतों में नहीं लगेगा।
  • गठिये का हमला आमतौर पर बुढ़ापे में होता है लेकिन बादी व आमवात के प्रकोप से जवान भी इस व्याधि के शिकार होते जा रहे हैं। जो गठिये से ग्रस्त हों वे शहद का नियमित रूप से सेवन करने की आदत बना लें। एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच शहद और पाँच बूंदें नींबू का रस मिलाकर दिन में तीन बार पीने से अधिक लाभ होगा। मरीज जितना ज्यादा शहद का प्रयोग करेगा उतनी ही जल्दी उसे गठिये से मुक्ति मिल सकती है।
  • शरीर में कहीं पर भी नासूर हो जाये तो वह खतरनाक साबित होता है। नासूर ऐसा रोग है, जो त्वचा के अंदर तक जड़ जमा लेता है और ठीक होने का नाम नहीं लेता है। नासूर के आसपास की त्वचा भी काली पड़ जाती है और मवाद निकलने लगता है। शहद में ऐसा गुण है, जो नासूर को जड़ से उखाड़ देता है। नासूर में शहद टपका दें और रूई पर शहद लगाकर नासूर पर चिपका दीजिये। शहद धीरे-धीरे घाव को अंदर ही अंदर सूखा देगा। 2-4 दिन के अंदर ही नासूर सूखकर भर जायेगा। आसपास की त्वचा का वर्ण भी सामान्य हो जायेगा।
  • गले में खराँश, कुकुर खाँसी, गले की गिल्टियाँ, चेहरे पर असमय झुरिॅयाँ होना, खुश्क त्वचा, फोड़े-फुंसी, मुँहासे, विसर्प, खुजली, मोटापा, हैजा, पथरी आदि रोगों में शहद काफी हद तक कारगर सिद्ध होता है।

अतः स्वास्थय के लिये शहद एक सर्वोत्तम औषधि है। जिसका हम नियमित सेवन कर सकते हैं। इसका नियमित सेवन स्वास्थय के लिये लाभदायक ही होता है।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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